दरअसल बीजेपी ने इस बार उपचुनाव के दौरान पीडीए का काट अपने जातीय समीकरण से ढूंढा. बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के सभी ओबीसी कैंडिडेट के खिलाफ अपना भी बड़ा ओबीसी चेहरा उतारा. इसकी वजह से पीडीए जमीन पर नहीं चल पाया और उपचुनाव में शानदार जीत मिली.

यूपी बीजेपी को जिस जीत की शिद्दत से दरकार थी वह जीत लोकसभा चुनाव के महज कुछ महीने बाद ही मिल गई. बीजेपी 9 उपचुनाव में से 7 सीटें जीतकर हताशा से उबरती हुई दिखाई दे रही है. बीजेपी इन 9 में से 4 कठिनतम सीटों (करहल- कुंदरकी- कटहरी- सीसामऊ) पर चुनाव लड़ रही थी जो वह पिछले कई दशकों से नहीं जीती थी

इनमें भी कटेहरी और कुंदरकी की जीत देखकर ऐसा लगा मानो बीजेपी के भीतर की वह जीत की भूख वापस लौट आई है और चुनावी मशीन बनकर भाजपा एक बार फिर उत्साह से लबरेज है. अंदाजा लगाइए बीजेपी ने कटहरी 33 साल बाद जीता तो कुंदरकी 31 साल के बाद, यह इस बात का प्रतीक है कि कठिनतम सीटों को जीतने के लिए बीजेपी ने कौन सी रणनीति नहीं बनाई होगी और कितना पसीना नहीं बहाया होगा.